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Amendment Procedure of the Indian Constitution

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Amendment procedure of the Constitution संविधान संशोधन की प्रक्रिया      किसी अन्य लिखित संविधान के समान भारतीय संविधान में भी परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुरूप उसे संशोधित और व्यवस्थित करने की व्यवस्था है। हालांकि इसकी संशोधन प्रक्रिया न तो ब्रिटेन के समान अत्यंत लचीली है और न ही अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया या कनाडा की भाँति अत्यंत कठोर।       संविधान संशोधन की यह प्रक्रिया दक्षिण अफ्रीका के संविधान से ग्रहण की गई है।       संविधान का भाग 20, अनुच्छेद 368 संविधान संशोधन से सम्बन्धित है। भारत में संविधान संशोधन की शक्ति संसद को दी गई है। राज्य विधान मण्डलों को संविधान संशोधन का अधिकार नहीं है।      संसद, प्रस्तावना तथा मूल अधिकारों सहित संविधान के किसी भी भाग में संशोधन कर सकती है किन्तु संविधान के 'आधार भूत ढाँचे (Basic Structure)' में संशोधन नहीं कर सकती है।(केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य)।     अनुच्छेद 368, के तहत् संविधान के लिए तीन प्रकार की प्रक्रिया का प्रावधान किया गया है। यथा— 1. साधार...

लोकतंत्र क्या है? लोकतंत्र‌ के प्रकार, उनकी विशेषताएं, गुण व दोष।

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           लोकतंत्र     लोकतंत्र का अंग्रेजी पर्यायवाची शब्द 'डेमोक्रेसी' (Democracy) है, जिसकी उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द 'डेमोस' एवं 'क्रेशिया' से हुई है।      डेमोस' का अर्थ, लोग तथा 'कॅशिया' का अर्थ, शासन से है। अतः लोकतंत्र का आशय, 'लोगों के शासन' से है। अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने अपने 'गैटिसबर्ग भाषण में लोकतंत्र को " जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए शासन' रूप में परिभाषित किया।      इस रूप में लोकतंत्र उस शासन प्रणाली को कहते हैं जिसमें जनता स्वयं प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से अपने प्रतिनिधियों के द्वारा सम्पूर्ण जनता के हित को दृष्टि में रखकर शासन करती है। लोकतंत्र के प्रकार—      साधारणतया लोकतंत्र (लोकतंत्रात्मक शासन) के दो भेद माने जाते हैं— 1. प्रत्यक्ष लोकतंत्र (Direct Democracy),  2. अप्रत्यक्ष लोकतंत्र (Indirect Democracy)। प्रत्यक्ष लोकतंत्र— जब जनता प्रत्यक्ष रूप से शासन कार्यों में भाग लेती है, नीति निर्धारित करती है, कानून बनाती और प्रशासनाधिकारी...

वक्फ कानून क्या है?‌ क्यों आजकल इसकी चर्चा हो रही? जाने वक्फ‌‌ के बारे में बिल्कुल आसान भाषा में।

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वक्फ क्या होता है? वक्फ बोर्ड क्या है? वक्फ कानून क्या है? वक्फ कानून का संशोधन कितना सही कितना गलत? आइए जानें....  वक्फ क्या है?        वक्फ अरबी भाषा से निकला हुआ शब्द है जिसकी उत्पत्ति 'वकुफा' शब्द से हुई है वकुफा का अर्थ होता है ठहरना या रोकना, इसी से बना है 'वक्फ' जिसका अर्थ होता है संरक्षित करना।‌ इस्लाम में वक्फ का अर्थ उस संपत्ति से है जो जनकल्याण के लिए हो।      इस्लामी परंपरा में, वक्फ उस संपत्ति या धन को कहते हैं जिसे धार्मिक या परोपकारी उद्देश्यों के लिए दान किया गया है अर्थात जो धर्म के नाम पर अपनी सम्पत्ति को दान में दे उसे वक्फ कहते हैं।      वक्फ कोई भी चल या अचल संपत्ति हो सकती है जिसे इस्लाम को मानने वाला कोई भी व्यक्ति धार्मिक कार्यों के लिए दान कर सकता है। इस दान की हुई संपत्ति का कोई भी मालिक नहीं होता है। 'दान की हुई संपत्ति का मालिक अल्लाह को माना जाता है' और इसे संचालित करने के लिए कुछ संस्थान बनाए गए हैं। वक्फ बोर्ड क्या है?        भारत में, वक्फ बोर्ड उन संपत्तियों का प्रबंध...

What is Federal System? संघीय व्यवस्था किसे कहते हैं?

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    संघीय व्यवस्था  (Federal System) क्या है संघीय व्यवस्था?      संघवाद वह यंत्र है जिसके द्वारा राज्य की समस्त शक्तियों का विभाजन दो प्रकार की सरकारों के मध्य हो जाता है। ये दो प्रकार की सरकारें, केंद्रीय सरकार और राज्यों की सरकारों के रूप में होती हैं। संघीय सरकार की परिभाषा करते हुए फाइनर ने कहा है कि "यह एक शासन है जिसमें सत्ता और शक्ति का एक भाग स्थानीय क्षेत्र में निहित होता है तो दूसरा भाग केंद्र में।"    भारत : राज्यों का संघ ‌(India:Union Of State)       संविधान के द्वारा भारत के लिए एक संघात्मक व्यवस्था की स्थापना की गई है लेकिन संविधान में कहीं पर भी 'संघ राज्य' (Federation)‌ शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है, वरन् उसके स्थान पर 'राज्यों के संघ' (Union of States)  शब्द का प्रयोग किया गया है। संविधान के प्रथम अनुच्छेद में कहा गया है कि भारत राज्यों का एक संघ होगा।   भारतीय संविधान के संघात्मक लक्षण : संविधान का स्वरूप संघात्मक है      यद्यपि भारतीय संविधान में 'स...

What is Directive Principles of State Policy राज्य नीति के निदेशक तत्व क्या है?

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   राज्य नीति के निदेशक तत्व                  (DPSP)        भारतीय संविधान के भाग-4, अनुच्छेद 36 से 51 तक में 'राज्य के नीति निर्देशक तत्वों' का वर्णन किया गया है। इसे 'आयरलैंड' के संविधान से लिया गया है। नीति निर्देशक तत्व हमारे संविधान की एक प्रमुख विशेषता है। भारत तथा आयरलैंड को छोड़कर विश्व के अन्य किसी भी देश के संविधान में इस प्रकार के निदेशक तत्वों का उल्लेख नहीं है।        भारतीय संविधान निर्माता का लक्ष्य भारत में कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना था इसलिए उन्होंने नीति निर्देशक तत्वों में उन सभी आदर्श का समावेश किया जिन्हें कार्य रूप में परिणत किए जाने पर एक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा मूर्तिरूप ले सके।      नीति निदेशक तत्वों का अर्थ–      निदेशक तत्व हमारे राज्य के सम्मुख कुछ आदर्श उपस्थित करते हैं, जिनके द्वारा देश के नागरिकों का सामाजिक, आर्थिक एवं नैतिक उत्थान हो सकता है। संविधान की प्रस्तावना द्वारा भारत के नागरिकों को समानता, ...

मौलिक अधिकार / Fundamental rights

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  Fundamental Rights      मौलिक अधिकार   मूल अधिकार की व्यवस्था भारतीय संविधान की सर्वाधिक प्रमुख व्यवस्थाओं में से एक है। मूल अधिकारों को भारतीय संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक स्थान दिया गया है। संविधान के भाग 3 में मूल अधिकारों का जितना व्यापक वर्णन किया गया है उतना विशुद्ध वर्णन विश्व के किसी अन्य संविधान में नहीं है।  मूल अधिकार का अर्थ:    वे अधिकार जो व्यक्ति के जीवन के लिए मौलिक तथा अनिवार्य होने के कारण संविधान तथा संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किए जाते हैं और जिन अधिकारों में राज्य द्वारा भी हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता, मूल अधिकार कहलाते हैं। इस प्रकार मूल अधिकारों को राज्य द्वारा पारित विधियों से उच्च स्थान प्राप्त होता है।      मूल अधिकारों को यह नाम इसलिए दिया गया है, क्योंकि इन्हें संविधान द्वारा गारंटी एवं सुरक्षा प्रदान की गई है, जो राष्ट्र कानून का मूल सिद्धांत है। यह 'मूल' इसलिए भी है क्योंकि यह व्यक्ति के चहुंमुखी विकास (भौतिक, बौद्धिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक) के लिए आवश्यक है।   ...

डॉ भीमराव अंबेडकर जी के विचार

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  डॉ. भीमराव अंबेडकर जी के मुख्य विचार:     डॉ भीमराव अंबेडकर जी के महत्वपूर्ण विचारों को निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं:– 1. सामाजिक विचार-  डॉ अंबेडकर ने वर्ण व्यवस्था का विरोध किया तथा डॉक्टर अंबेडकर ने ब्राह्मणवादी व्यवस्था पर आक्रमण किया।  डॉ अंबेडकर ने जाति व्यवस्था का घोर विरोध करते हुए कहा कि हिंदू समाज के अनेक विकृतियों और अन्याओं के लिए जाति व्यवस्था उत्तरदायी है।  डॉ अंबेडकर के अनुसार, जातीय व्यवस्था में सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए कोई स्थान नहीं है।  डॉक्टर अंबेडकर ने छुआछूत (अस्पृश्यता) का विरोध किया। डॉ अंबेडकर के अनुसार अस्पृश्यता के जड़े वर्णव्यवस्था में है। अंबेडकर ने समाज के उत्थान के लिए अस्पृश्यता का निवारण अति आवश्यक माना।  डॉक्टर अंबेडकर ने चार वर्णीय व्यवस्था में सूत्रों को निम्न स्थान दिए जाने के आधार पर भी विरोध किया।  2. राजनीतिक विचार- डॉ.अंबेडकर ने राज्य का उदारवादी स्वरूप स्वीकार किया तथा वे कल्याणकारी राज्य के पक्षधर थे। डॉ. अंबेडकर ने संसदीय शासन पद्धति का समर्थन किया।  डॉ. अं...