What is Federal System? संघीय व्यवस्था किसे कहते हैं?

  

 संघीय व्यवस्था

 (Federal System)

क्या है संघीय व्यवस्था? 

    संघवाद वह यंत्र है जिसके द्वारा राज्य की समस्त शक्तियों का विभाजन दो प्रकार की सरकारों के मध्य हो जाता है। ये दो प्रकार की सरकारें, केंद्रीय सरकार और राज्यों की सरकारों के रूप में होती हैं। संघीय सरकार की परिभाषा करते हुए फाइनर ने कहा है कि "यह एक शासन है जिसमें सत्ता और शक्ति का एक भाग स्थानीय क्षेत्र में निहित होता है तो दूसरा भाग केंद्र में।" 

  भारत : राज्यों का संघ
‌(India:Union Of State) 


     संविधान के द्वारा भारत के लिए एक संघात्मक व्यवस्था की स्थापना की गई है लेकिन संविधान में कहीं पर भी 'संघ राज्य' (Federation)‌ शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है, वरन् उसके स्थान पर 'राज्यों के संघ' (Union of States) शब्द का प्रयोग किया गया है। संविधान के प्रथम अनुच्छेद में कहा गया है कि भारत राज्यों का एक संघ होगा।

  भारतीय संविधान के संघात्मक लक्षण : संविधान का स्वरूप संघात्मक है

     यद्यपि भारतीय संविधान में 'संघ राज्य' शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है, लेकिन वास्तव में यह एक संघ राज्य है। भारतीय संविधान में संघात्मक व्यवस्था के सभी प्रमुख लक्षण विद्यमान हैं, जो इस प्रकार हैं :

1. द्वैध राजपद्धति– संविधान में संघ स्तर पर केंद्र एवं राज्य स्तर पर राजपद्धति को अपनाया गया। प्रत्येक को संविधान द्वारा क्रमशः अपने क्षेत्र में संप्रभु शक्तियां प्रदान की गई हैं। केंद्र सरकार राष्ट्रीय महत्व के मामलों, जैसे रक्षा, विदेशी, मुद्रा, संचार आदि को देखती है, जबकि दूसरी तरफ राज्य सरकारें क्षेत्रीय एवं स्थानीय महत्व के मुद्दों को देखती हैं, जैसे सार्वजनिक व्यवस्था, कृषि, स्वास्थ्य, स्थानीय प्रशासन आदि। 

2. शक्तियों का विभाजन–  संविधान में केंद्र एवं राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया।  इसमें सातवीं अनुसूची में केंद्र राज्य एवं दोनों से संबंधित सूची निहित हैं। केंद्र सूची में 90 विषय (मूलतः97) राज्य सूची में 59 विषय (मूलतः 66) और समवर्ती सूची में 52 विषय (मूलतः 47) हैं। समवर्ती सूची के विषयों पर केंद्र एवं राज्य दोनों कानून बना सकते हैं। टकराव की स्थिति में केंद्र की विधि प्रभावी होगी।  

3. संविधान की सर्वोच्चता– भारतीय संविधान इस देश का सर्वोच्च कानून है। इसके प्रावधान सभी सरकारों पर बाध्यकारी हैं और केंद्रीय या राज्य सरकार के द्वारा इनका उल्लंघन नहीं किया जा सकता है। संक्षेप में, इस देश में कोई भी शक्ति संविधान के ऊपर नहीं है।

4. स्वतंत्र न्यायपालिका– भारतीय संविधान के द्वारा, संविधान के रक्षक के रूप में कार्य करने के लिए स्वतंत्र उच्चतम न्यायालय की भी व्यवस्था की गई है। संविधान में दो कारणों से उच्चतम न्यायालय के नेतृत्व में स्वतंत्र न्यायपालिका का गठन किया है। एक, अपनी न्यायिक समीक्षा के अधिकार का प्रयोग कर संविधान की सर्वोच्चता को स्थापित करना, और दूसरा, केंद्र एवं राज्य के बीच विवाद के निपटारे के लिए। न्यायालय की यह व्यवस्था संघात्मक शासन के पूर्णतया अनुकूल है। 

5.लिखित और कठोर संविधान– भारतीय संविधान एक लिखित संविधान है और संविधान में संशोधन की दृष्टि से यह कठोर संविधानों की श्रेणी में आता है। संविधान में संशोधन, संविधान में बताए गए प्रक्रिया के आधार पर किया जा सकता है और यह पद्धति साधारण व्यवस्थापन के पद्धति से भिन्न है। संविधान द्वारा किए गए शक्ति विभाजन में संघीय सरकार या राज्य सरकारों में किसी एक के द्वारा ही अपनी इच्छा से परिवर्तन नहीं किया जा सकता वरन् इन प्रावधानों में परिवर्तन दोनों की सहमति से संभव है। इस प्रकार से संविधान की संशोधन प्रक्रिया में राज्यों की भूमिका है । 

6.द्विसदनीय विधायिका– संविधान में द्विसदनीय विधायिका की स्थापना की है– उच्च सदन (राज्यसभा) और निम्न सदन (लोकसभा)। राज्यसभा, भारत के राज्यों का प्रतिनिधित्व करती हैं जबकि लोकसभा भारत के लोगों (पूर्ण रूप से) का। राज्यसभा (यद्यपि कम शक्तिशाली है) केंद्र के अनावश्यक हस्तक्षेप राज्यों के हितों की रक्षा करती है। 

      संविधान के उपर्युक्त प्रावधानों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारतीय संविधान एक पूर्ण संघात्मक व्यवस्था की स्थापना करता है। 

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